418/2022
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✍️ शब्दकार ©
🌀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जैसा तुम चाहो बुलवाना।
कौन न चाहे बाहों आना।।
टेढ़ी को सीधी बतलाए,
चाहे जितना ढाओ ढाना।
जाए पूरब बोले पश्चिम,
गीत झूठ मुख बाओ गाना।
जनता भेड़ घास ही चाहे,
घास -पात ही आबो - दाना।
मीठे टुकड़ों में जो पाएँ,
मिले मुफ़्त में पाओ खाना।
समझ न आए कभी सियासत,
संग विरोधी खाओ खाना।
नहीं मानते पाप - पुण्य को,
जन-जन को उकसाओ माना।
करें 'शुभम्'अपना विकास ही,
उसका ही बस गाओ गाना।
🪴शुभमस्तु !
16.10.2022◆1.15
पतनम मार्तण्डस्य।
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