रविवार, 16 अक्तूबर 2022

समझ न आए कभी सियासत 🪀 [ गीतिका ]

 418/2022


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✍️ शब्दकार ©

🌀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जैसा   तुम  चाहो   बुलवाना।

कौन न चाहे    बाहों  आना।।


टेढ़ी    को    सीधी   बतलाए,

चाहे   जितना   ढाओ   ढाना।


जाए    पूरब     बोले   पश्चिम,

गीत  झूठ   मुख बाओ गाना।


जनता  भेड़    घास  ही  चाहे,

घास -पात  ही आबो -  दाना।


मीठे  टुकड़ों   में    जो   पाएँ,

मिले मुफ़्त   में  पाओ खाना।


समझ न आए कभी सियासत,

संग  विरोधी   खाओ  खाना।


नहीं  मानते   पाप - पुण्य को,

जन-जन को उकसाओ माना।


करें 'शुभम्'अपना विकास ही,

उसका ही बस   गाओ  गाना।


🪴शुभमस्तु !

16.10.2022◆1.15

पतनम मार्तण्डस्य।

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