396/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
बोता है उर - क्षेत्र में,लघु शब्दों के बीज।
कवि-किसान खेती करे,सद भावों से भीज।।
सद भावों से भीज, बुद्धि की बाड़ लगाई।
उगे काव्य के फूल, सुगंधें महकीं छाईं।।
'शुभम्'बाँटता नित्य,नहीं कवि थकता सोता।
माँ वाणी की कृपा, धर्म मानव का बोता।।
-2-
बोए बचपन से सदा, नित्य हजारों फूल।
लक्ष्य सुगंधें बाँटना, नहीं चुभाना शूल।।
नहीं चुभना शूल,करूँ विधिवत रखवाली।
श्रोता गाते गान,बजाते कर से ताली।।
'शुभम्' देश हित लीन,माल मणियों की पोए।
कवि है एक किसान,शब्द जनहित में बोए।।
-3-
बोना कभी न शूल तू,दुखे न कोई पाँव।
हे कवि तू खेती करे, डगर नगर नित गाँव।।
डगर नगर नित गाँव,शारदा माँ की छाया।
उतरे उर में नित्य, काव्य तेरा मनभाया।।
'शुभम्' देश मत भूल,सदा मानव ही होना।
दानवता के बीज ,कभी भू उर मत बोना।।
-4-
बोते - बोते बीज को, बनते बीज अपार।
पाठक श्रोता मुदित हैं,उमड़ा पारावार।।
उमड़ा पारावार, शब्द भावों की खेती।
उपजाऊ उर - भूमि,आर्द्र माटी या रेती।।
'शुभम्' उगाती फूल,सुहृद सब प्रमुदित होते।
थकता नहीं किसान, बीज भावों के बोते।।
-5-
बोई वसुधा पर गई,कवि - वाणी नित नेक।
सबका ही मंगल करे,जनहित कवि की टेक।
जनहित कवि की टेक,कर्म- फलदाता वाणी
महकी सुखद सुगंध,सदा जन-जन कल्याणी
'शुभम्' काव्य के खेत,महकती वाणी कोई।
देती सर्वानंद, फसल कवि ने जो बोई।।
🪴शुभमस्तु!
०५.१०.२०२२◆४.००आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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