सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

स्वदेशी अपनाएँ 🛝 [ बालगीत ]

 422/2022

 

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार©

🛝 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

आओ  हम  स्वदेश  अपनाएँ।

धारण  करें   स्वदेशी   लाएँ।।


मोबाइल या  खेल -  खिलौने।

दिये  दिवाली वस्त्र  बिछौने।।

नहीं   विदेशी   घर   में आएँ।

आओ हम  स्वदेश अपनाएँ।।


यहीं  सभी   कुछ पैदा  होता।

कृषक अन्न फल सब्जी बोता।

फूल  विदेशी  क्यों  महकाएँ!

आओ हम स्वदेश  अपनाएँ।।


लोहा, लकड़ी, चाँदी,  सोना।

भारत   की  धरती  में होना।।

अपने  साधन  सभी  बनाएँ।

आओ हम स्वदेश  अपनाएँ।।


माल  विदेशी जो अपनाता।

धन स्वदेश का बाहर जाता।।

सोने की चिड़िया बन जाएँ।

आओ हम स्वदेश अपनाएँ।।


सभी  मशीनें   या  कंप्यूटर।

कारें,   लारी,  रेलें ,  मोटर।।

'शुभम्' यहीं निर्माण कराएँ।

आओ हम स्वदेश अपनाएँ।।


🪴शुभमस्तु !


17.10.2022◆10.30 आ.मा.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...