420/2022
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✍️शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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शरद - आगमन भोर हो रहा।
मन का वानर मोर हो रहा।।
ज्योति - पर्व दीवाली आई,
अँधियारा घनघोर हो रहा।
पायलिया की सुन - सुन रुनझुन,
मन चंचल चितचोर हो रहा।
कब हो रात प्रतीक्षा करते,
देह - दर्द प्रति पोर हो रहा।
ताम्रचूड़ कुक्कड़कूँ करते,
गली - गली में शोर हो रहा।
कम्बल सुखद रजाई आई,
शयन - कक्ष हिल्लोर हो रहा।
'शुभम्' विदा वापस ऋतु रानी,
मन मेरा तव ओर हो रहा।
🪴शुभमस्तु !
17●10●2022◆5.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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