309 /2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
धूम रसायन से भर डाला।
नील गगन काला कर काला।।
औंधा है ज्यों बड़ा कटोरा।
नहीं समझना ओढ़ा बोरा।।
सहज स्वच्छ हो गगन निराला।
नील गगन काला कर डाला।।
बादल सघन नीर भर लाते।
धरती का शृंगार सजाते।।
लगा नहीं अंबर में ताला।
नील गगन काला कर डाला।।
पेटरॉल डीजल जलता है।
जीव - जंतुओं को खलता है।।
फैला रहा रोग का जाला।
नील गगन काला कर डाला।।
वर्षा भी अब कम होती है।
प्रकृति सुंदरी नित रोती है।।
विष वमनों से पड़ता पाला।
नील गगन काला कर डाला।।
आओ नीला गगन बचाएँ।
अन आवश्यक नहीं जलाएँ।।
गगन नहीं विषधर का नाला।
नील गगन काला कर डाला।।
शुभमस्तु !
29.06.2025●10.00आ०मा०
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