रविवार, 29 जून 2025

मुझे पता है धर्म कहाँ है [बालगीत]

 312/ 2025


   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मुझे      पता   है   धर्म    कहाँ   हैं।

जहाँ  ढोंग    है     धर्म   वहाँ    है।।


धर्म      धुरंधर          हैं       बहुतेरे।

बने    हुए      हैं    जाल      घनेरे।।

होती    नहीं     वहाँ     सुबहा    है।

मुझे    पता   है     धर्म   कहाँ   है।।


छापा     तिलक      त्रिशूल   धारते।

परदे      में     रह    मीन     मारते।।

नारी    जिनका    सकल  जहाँ   है।

मुझे     पता    है    धर्म   कहाँ  है।।


देवालय     में     पाँव       पुजाए।

वहीं     धर्म   का  मठ बन  जाए।।

उपदेशक     दरबार      वहाँ    है।

मुझे    पता   है  धर्म     कहाँ  है।।


कहता    रखो    कनक   से   दूरी।

मुझे     खिलाओ   हलुआ     पूरी।।

जातिवाद    का   खोट    वहाँ  है।

मुझे पता    है  धर्म     कहाँ     है।।


नारी    को   मत  साथ    लगाओ।

हो    संभव  तो    हमें    बताओ।।

नारी-  तन   में   नरक    रहा    है।

मुझे  पता  है     धर्म     कहाँ  है।।


करें    धर्म   की    सभी   सफाई।

ऊँचनीच   की    तज    प्रभुताई।।

छाछ    तुम्हारा    दूध     वहाँ   है।  

मुझे  पता     है   धर्म     कहाँ  है।।


शुभमस्तु !


29.06.2025●2.30प०मा०

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