315/2025
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पाप - पुण्य हर एक जानता।
पर अपनी ही साँच मानता।।
भला - बुरा हर कोई जाने।
अनजाने के करे बहाने।।
यारों के संग बैठ छानता।
पाप - पुण्य हर एक जानता।।
परदे के पीछे की करनी।
पड़ती है प्रत्यक्ष में भरनी।।
अपनी मूँछें दिखा तानता।
पाप - पुण्य हर एक जानता।।
मात - पिता को नित्य सताए।
सेवा भाव न मन में लाए।।
बढ़चढ़ कर वह बात भानता।
पाप -पुण्य हर एक जानता।।
करे भागवत कहे बढ़ाई।
पानी मिला खीर बढ़वाई।।
स्वयं पाप में हाथ सानता।
पाप - पुण्य हर एक जानता।।
आत्मप्रशंसा में मन लाए।
करे बुराई जीव सताए।।
बैठी मन में सदा श्वानता।
पाप - पुण्य हर एक जानता।।
शुभमस्तु !
30.06.2025●4.00आ०मा०
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