सोमवार, 30 जून 2025

पाप -पुण्य हर एक जानता [ बालगीत ]

 315/2025




© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पाप  - पुण्य     हर   एक   जानता।

पर  अपनी     ही    साँच  मानता।।


भला - बुरा     हर      कोई     जाने।

अनजाने     के        करे     बहाने।।

यारों    के    संग     बैठ     छानता।

पाप  -  पुण्य    हर   एक  जानता।।


परदे     के      पीछे     की   करनी।

पड़ती  है    प्रत्यक्ष      में    भरनी।।

अपनी    मूँछें        दिखा    तानता।

पाप  -  पुण्य   हर   एक   जानता।।


मात  - पिता    को    नित्य  सताए।

सेवा   भाव    न   मन    में   लाए।।

बढ़चढ़   कर   वह   बात   भानता।

पाप  -पुण्य    हर   एक   जानता।।


करे     भागवत     कहे      बढ़ाई।

पानी     मिला     खीर    बढ़वाई।।

स्वयं     पाप    में    हाथ   सानता।

पाप -  पुण्य  हर   एक    जानता।।


आत्मप्रशंसा       में    मन    लाए।

करे      बुराई      जीव      सताए।।

बैठी     मन     में   सदा    श्वानता।

पाप - पुण्य    हर   एक   जानता।।


शुभमस्तु !


30.06.2025●4.00आ०मा०

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