320 /2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
शाह चोर सबकी यह चाहत।
न्याय मिले मिल जाए राहत।।
ढूँढ़ा बहुत कहीं मिल जाता।
बड़े प्रेम से गले लगाता।।
जहाँ मिला तो मिलता आहत।
न्याय मिले मिल जाए राहत।।
कचहरियां सब कच हर लेतीं।
नाम न्याय का समय न देतीं।।
मिला न उनमें सत का शरबत।
न्याय मिले मिल जाए राहत।।
क्या अधिवक्ता जज कर पाते।
जब जाते तारीख बढ़ाते।।
बदल गया है अब अपना मत।
न्याय मिले मिल जाए राहत।।
पहले स्वच्छ मनुज को होना।
पड़े अदालत का क्यों रोना।।
अपनी - अपनी करें हिफ़ाजत।
न्याय मिले मिल जाए राहत।।
आओ सब नर - नारी आओ।
सदा सत्य को गले लगाओ।।
पड़े न मन में कोई हाजत।
न्याय मिले मिल जाए राहत।।
शुभमस्तु !
30.06.2025●7.00आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें