रविवार, 29 जून 2025

आओ छत की ओर निहारें [बालगीत]

 302 /2025


  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आओ    छत   की    ओर    निहारें।

घर   आँगन    की   तरह    सँवारें।।


छत  पर   भरें   न   कूड़-  कबाड़ा।

रुके  न जल  का   कभी   पनाड़ा।।

गमलों  में    कुछ  पेड़    सजा  लें।

आओ  छत  की   ओर     निहारें।।


जब   घूमने     छतों    पर     जाएँ।

आँख  तृप्त   हों    लख   शोभाएँ।।

हरियाली       की       फूटें     धारें।

आओ    छत   की   ओर    निहारें।।


प्राण    वायु   के     पेड़    सजाएँ।

मनीप्लांट      की   बेल    लगाएँ।।

पथरचटा      घीग्वार         उभारें।

आओ   छत  की   ओर   निहारें।।


रोड़े    ईंट    न     कचरा    भरना।

छत  से  दूर सभी    को   करना।।

ऐसे   घर     को     प्रभु     उद्धारें।

आओ  छत   की    ओर   निहारें।।


छत    भी    होतीं    घर का हिस्सा।

अलग नहीं   है    उनका   किस्सा।।

नित्य      नियम   से  छतें   बुहारें ।

आओ   छत     की  ओर  निहारें।।


शुभमस्तु !


28.06.2025●7.15प०मा०

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