318/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कौन बिना खाए पहचाना!
पहले पड़ता ही है खाना।।
हाथ नहीं अपने से खाता।
शुभचिंतक ही अन्य खिलाता।।
धोखे का अज्ञात नपाना।
कौन बिना खाए पहचाना!!
नित्य बड़े धोखे होते हैं।
खा लेते तब ही रोते हैं।।
धोखे का है अजब तराना।
कौन बिना खाए पहचाना।।
जानबूझ क्यों धोखा खाए।
जब - जब खाए तब पछताए।।
चखना एक न चाहे दाना।
कौन बिना खाए पहचाना।।
नहीं किसी को इसे खिलाना।
अपना हो या अन्य बिराना।।
कभी किसी को मत उकसाना।
कौन बिना खाए पहचाना।।
आओ भारत स्वच्छ बनाएँ।
सोने - सा इसको चमकाएं।।
अपने ही परिश्रम का पाना।
कौन बिना खाए पहचाना।।
शुभमस्तु !
30.06.2025●6.00आ०मा०
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