304/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जग की शोभा पेड़ - लताएँ।
अधिकाधिक हम पेड़ उगाएँ।।
जहाँ पेड़ हों शांति समाए।
छाया मिले अतिथि ठहराए।।
रहते खग पशु भैंसें गायें।
जग की शोभा पेड़ - लताएँ।।
न हो अकाल न सूखा कोई।
धरा नहाए सजल भिगोई।।
देख छाँव मन खो - खो जाए।
जग की शोभा पेड़ - लताएँ।।
डाल - डाल पर बैंठे पक्षी।
वही हमारे नित अभिरक्षी।।
मधुर - मधुर फल हम सब खाएँ।
जग की शोभा पेड़- लताएँ।।
जहाँ पेड़ हों वर्षा होती।
झड़ें मेघ से जल के मोती।।
लगती हैं मनहर कविताएँ।
जग की शोभा पेड़ - लताएँ।।
चलो सड़क पर पौधे रोपें।
बातों की हम चला न तोपें।।
धरती को तरु से हरियाएँ।
जग की शोभा पेड़ - लताएँ।।
शुभमस्तु !
29.06.2025●6.00आ०मा०
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