306/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पों - पों पीं - पीं करती लारी।
ट्रक कारों के वाहन भारी।।
नहीं चैन से रहने देते।
कान फोड़ते वाहन जेते।।
शोर प्रदूषण की बीमारी।
पों - पों पीं - पीं करती लारी।।
मानक हो ध्वनि- विस्तारण का।
बनें निवारक अति वादन का।।
बने नहीं जन की लाचारी।
पों - पों पीं- पीं करती लारी।।
कानों की अपनी सीमा है।
नहीं अवधि का ध्वनि - बीमा है।।
कानों को ध्वनि लगती खारी।
पों-पों पीं-पीं करती लारी।।
ध्वनिज - स्वच्छता को अपनाएँ।
सेहत सजा सहज सुख पाएँ।।
करें जागरण होश सँवारी।
पों -पों पीं - पीं करती लारी।।
सभी स्वार्थ में खोए इतने।
परहित के मिलते हैं सपने।।
ध्वनि से गिरते महल अटारी।
पों - पों पीं - पीं करती लारी।।
शुभमस्तु !
29.06.2025●8.00आ०मा०
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