319/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चादर अपनी सभी निहारें।
चरित - चाँदनी नहीं उजारें।।
कब मैली चादर हो जाए।
पता न इसका लगने पाए।।
देख न दौलत अपनी कारें।
चादर अपनी सभी निहारें।।
छेड़छाड़ या चोरी कामी।
चरित -चदरिया विशद इनामी।।
गबन मिलावट की दरकारें।
चादर अपनी सभी निहारें।।
नर - नारी तक इसकी सीमा।
नहीं चरित आजीवन बीमा।।
बहतीं हैं बहु सघन फुहारें।
चादर अपनी सभी निहारें।।
नहीं दूध का कोई धोया।
दुश्चरिता के संग न सोया।।
दुष्चरित्र की सदा बहारें।
चादर अपनी सभी निहारें।।
आओ धो लें मैल चदरिया।
स्वच्छ रहें गिरि घर या दरिया।।
अपने मन की कालिख जारें।
चादर अपनी सभी निहारें।।
शुभमस्तु !
30.06.2025●6.30 आ०मा०
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