सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

बसंत [ चौपाई ]

 070/2025

                      


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बीता     माघ     मास     फगुनाया।

जड़ - चेतन      बसंत      गहराया।।

गेंदा    पाटल        महके     क्यारी।

ऋतु   बसंत की   है  अति   प्यारी।।


सुमन  खिले  अलि दल   बहु  झूले।

पतझड़    के    उठ   रहे     बगूले।।

फूल  - फूल पर     तितली    जाती।

ऋतु  बसंत  की  अति   मनभाती।।


पीली  -  पीली       सरसों    फूली।

उड़ने     लगी    राह     में    धूली।।

टेसू      खिले  लाल    रँग     वाले।

सेमल  के    हैं     सुमन    निराले।।


बजे    गाँव    में     ढोल     नगाड़े।

कामदेव  के  ध्वज     बहु    ठाड़े।।

गाएँ       फाग     गीत      जोगीरा।

धरे  वियोगिनि  हृदय    न    धीरा।।


कोयल की ध्वनि   अति   मनभाई।

गूँज   उठे    सब    वन   अमराई।।

मेहो - मेहो          सारँग      नाचें।

वन - उपवन    में    भरें   कुलाँचें।।


चना  - मटर    खेतों    में    झूमें।

गंदुम   लहर - लहर  नभ    चूमें।।

नर-नारी       मन    में     हर्षाते।

तन- मन में    रति  भाव लजाते।।


नव  बसंत  की    महिमा  न्यारी।

विकसित हैं तरु लतिका क्यारी।।

'शुभम्'  हृदय  में  कविता जागी।

मातु     शारदा   का    अनुरागी।।


शुभमस्तु !


09.02.2025●11.00प०मा०

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