मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

संगम [ चौपाई ]

 089/2025

                 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


संगम  -  घाट       नहाओ   भाई।

धुले  पाप      की      मैली     काई।।

जो    नर  संगम -  घाट     नहाते।

पल में  पाप   शमन    कर    जाते।।


गंगा  - यमुना     मिलतीं    सरिता।

पाप  नाशिनी   पुण्य    सु भरिता।।

भर-  भर    ट्रेन   बसों    में   जाते।

संगम से जल    भर कर  लाते।।


पुण्य     हजारों     जो    करते   हैं।

वे क्यों     पुण्य  और    भरते  हैं??

पुण्यवान   क्यों     नहा    रहे    हैं।

संगम  में  सब   पाप    बहे   हैं??


है  संगम    प्रयाग     में     सुंदर।

बन  जाता  क्या   पाप     पुरंदर??

लाख  करोड़ों       खूब     नहाएँ।

पाप     घटा    घर   वापस  आएँ।।


मैले   वस्त्र     सभी     हैं     धोते।

पाप    घटाते     देह       भिगोते।।

संगम  भारत का   अघ  शामी।

साधु    संत    नेता     जन कामी।।


संत     अघोरी         नागा    जाते।

संगम  जा    अचरज दिखलाते।।

संन्यासी     धर     चीवर      पीले।

नित्य  नहाते        शिष्य   सजीले।।


संगम    की   शुचि  शोभन महिमा।

व्यक्ति     बढ़ाए     अपनी   गरिमा।।

न   हो    मनों  से   संगम   मन  का।

क्या   होता   है   धोकर    तन   का।।


शुभमस्तु !


16.02.2025●8.00 प०मा०

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