92/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
दिशा - दिशा की बात निराली।
वन मैदान कहीं हरियाली।।
पूरब पश्चिम दक्षिण सागर।
उत्तर दिशि मम देश उजागर।।
उत्तर दिशा हिमालय अपना।
रक्षक स्वर्ण शृंग नित तपना।।
बहतीं जिससे सुरसरि धारा।
यमुनोत्री का वहीं किनारा।।
चार धाम हैं दिशा - दिशा में।
लगतीं मोहक सुबहें शामें।।
पूर्व दिशा से सूरज उगता।
पश्चिम में वह जाकर छिपता।।
पूरब से जन पश्चिम जाते।
रोजी - रोटी सभी कमाते।।
उत्तर से दक्षिण जन जाएं।
उन्नति के अवसर जब पाएँ।।
उगती पौध किसी भी क्यारी।
महके अन्य दिशा फुलवारी।।
दिशा - दिशा मधुमक्खी जातीं।
छत्ते पर रस ले जा पातीं।।
प्रगति न देता एक ठिकाना।
दिशा - दिशा में पड़ता जाना।।
जहाँ बसें वह देश हमारा।
उसी दिशा में मिले किनारा।।
'शुभम् ' न खूँटा गाड़े बैठें।
अपने मन में तनें न ऐंठें ।।
दिशा कौन सी शुभ बन जाए।
अवसर उचित अगर मिल पाए।।
शुभमस्तु !
11.03.2024●10.45आ०मा०
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