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✍ शब्दकार©
💃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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'ना' ' ना ' ही करती रहे,
नारी का यह राज।
जो समझे मतिमान वह,
होता तदवत काज।।
होता तदवत काज,
तुष्टि पा जाती नारी।
जो न जानता गूढ़,
वहीं वह अत्याचारी।।
'शुभम' पहेली नारि,
जगत नारी को जाना।
'हाँ ' ही समझे मीत,
कहे यदि नारी 'ना' 'ना'।।1।
नारी माता पुरुष की,
नारी भगिनी मित्र।
नारी देवी , चंडिका,
नारी - चरित विचित्र।।
नारी - चरित विचित्र,
न समझे ऋषि मुनि ज्ञानी।
भारी नर से नारि,
नहीं नर उसका सानी।।
'शुभम ' नारियाँ कांत,
नहीं नर से वह हारी।
पल - पल बदले रूप,
अपरिमित महिमा नारी।।2।
नारी शिक्षित बेपढ़ी,
करती तन - श्रृंगार।
भले न भोजन उदर में,
तन - सज्जा अनिवार।।
तन - सज्जा अनिवार,
वर्ण तन मानक गोरा।
पौडर क्रीमें पोत,
सजाती निज तन कोरा।।
'शुभम' सुबह से शाम,
सजावट में रत भारी।
सास ननद बिक जाएँ,
न बदली भारत - नारी।।3।
सीधी नारी खोजना ,
जग में दुर्लभ काम।
वामा भी पर्याय है,
सिद्ध सदा यह नाम।।
सिद्ध सदा यह नाम,
तिया जोरू या जाया।
वधू वल्लभा रूप ,
अजब वनिता की माया।।
सजनि सजाए देह,
'शुभम' नर धी है बींधी।
वह जन होता मूढ़ ,
नारि को कहता सीधी।।4।
नारी में बसते सदा,
विविध विरोधाभास।
वधू रूप कुछ और है,
और रूप कुछ सास।।
और रूप कुछ सास,
कुमारी कन्या देवी।
गृहलक्ष्मी का रूप,
पोषिणी पति पदसेवी।।
'शुभम' नारि की माप,
न जाने देव , मुरारी।
नाच रहा संसार ,
न जाना कोई नारी।।5।।
💐 शुभमस्तु !
19.05.2020 ◆1.15 अपराह्न।
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