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✍शब्दकार©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आओ पर्यावरण सुधारें ।
स्वयं तरें सारा जग तारें ।।
छाया धुआँ हवा में गहरा।
अंधा मानव पूरा बहरा।।
अपने पाँव कुल्हाड़ी मारें।
आओ पर्यावरण सुधारें।।
व्यर्थ बहाता मानव पानी।
समझाएँ पर बात न मानी।।
धुआँ छोड़ती दौड़ें कारें।
आओ पर्यावरण सुधारें।।
कीटनाशकों को वह खाता।
अन्न फलों सब्जी में लाता।।
धरती जल आकाश उजारें।
आओ पर्यावरण सुधारें।।
मनुज प्रदर्शन में मतवाला।
नहीं चाहता चमड़ा काला।।
गोरा कोई नहीं हुआ रे।
आओ पर्यावरण सुधारें।।
धरती माँ से प्यार नहीं है।
पॉलीथिन अम्बार यहीं हैं।।
साश्रु सुबकती धरती माँ रे।
आओ पर्यावरण सुधारें।।
💐 शुभमस्तु !
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