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✍ शब्दकार©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जिन हाथों ने सहज बनाया।
वह ही ताजमहल कहलाया।।
मजदूरों के हाथ काटकर ,
मन क्या तेरा बहल न पाया?
स्मृति रंगी लाल लोहू से,
अबलाओं पर कहर है ढाया।
मजबूरों का चैन छीनकर,
डूबा, अपना चहल मनाया।
अपना नाम जहाँ चमकाकर,
कर्मवीर पर रहम न आया?
जिस्म-पसीने का क्या अहसाँ
उनका कौशल नहर बहाया।
ख़ुदगर्जी यह 'शुभम'शाह की,
गर्म लहू की नहर नहाया।।
💐 शुभमस्तु !
01.05.2020◆12.45 अप.
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