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✍शब्दकार©
🍇 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अरे !अरे !! ऐसा कैसे
सोमरस तो बहुत जरूरी है!
यह देव भोग है ,
यह तो दैव योग है ,
कि यह आज भी है,
राजस्व वृद्धि का राज भी है,
सब कुछ बन्द रहे ,
पर सोमरस चालू रहे।
न मंदिर में घंटा बजे,
न मस्जिद में अज़ान हो,
एक तरफ ये सोमरस,
दूसरी तरफ मसान हो,
यही तो देश के
राजस्व की चाबी है,
बिना सोमरस के
अंधकारमय भावी है ?
लगता है कि
लोगों के दिमागों में
बैठा एक शराबी है।
बिना खाये
कोई मरे न मरे,
बिना पिये जरूर
मर जायेगा,
यही तो भविष्य
कल के भारत के,
ये तर गए तो
हिंदोसितां तर जाएगा।
अब पता चला है,
जब मधुशाला का
ताला खुला है,
आदमी कितना
मनचला है,
न जाने कब से
उसने स्वयं को छला है।
'दैहिक -दूरी ' का
अनुपालन कर रहे,
घरों में महीने
चार महीने का
स्टॉक भर रहे,
महीने भर तो
मिली ही नहीं,
चलो भगवान
सुने या न सुने,
सरकार ने सुन तो ली।
क्या लाभ किसी
मंदिर , मस्जिद , चर्च से?
सरकार हमें चाहती है
अपनी गरज से,
हमारे सिर पर
देश की अर्थव्यवस्था है,
देश के लिए
अपन का जिस्म भी दें
तो सस्ता है,
यही तो एकमात्र
राजस्व वृद्धि का
सुंदर रास्ता है,
भले ही अपने घर
जोरू की हालत
खस्ता है,
बच्चों के पास
पट्टी है न बस्ता है,
देश सेवा के लिए
ये सौदा भी सस्ता है,
पहले देश
उसके बाद कुछ और,
एक जाम
तो चाहिए और।।
💐 शुभमस्तु !
14.05.2020 ◆8.10 अप.
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