सोमवार, 18 मई 2020

तलवार [ दोहा ]


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✍ शब्दकार©
🖊️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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तल   तक करती वार जो,    कहलाती तलवार।
अपने     शस्त्रागार  में ,   शोभित म्यानाकार।।

उन      वीरों     का युग गया,लड़ते खड़े समक्ष।
कपटी    कलयुग  चल रहा,   लड़ते बैठे कक्ष।।

तोप     मिसाइल टैंक युग, विदा हुई तलवार।
चलती    थीं   खनखन,  सभी लेतीं शीश उतार।

कलमवीर     की लेखनी, नवयुग की तलवार।
अमिट   घाव  करती  सदा,  अंतर का संहार।।

कलम    उठाओ   शत्रु   पर,चीन पाक नापाक।
निज      तलवारी वार से,जमा विश्व में धाक।।

कवि    लेखक के हाथ में,  पावनतम तलवार।
 घाव करो अरि   वक्ष में,लखे न घर का द्वार।।

वीर    रौद्र     रस का   करो,वीर हृदय संचार।
आगे   व  ह बढ़ता   रहे,   विजयश्री के द्वार।।

कलम   मंत्र  पढ़ तेग का, करके  दुर्गा ध्यान।
करो  वीर  रस   से  भरी, कविता का संज्ञान।।

तेग          तुम्हारी  लेखनी ,कविता तेरा  वार।
मौन  मौन में मुखर है, करो कलम से प्यार।।

सैनिक   है   मैदान में,कवि की यह तलवार।
रोमांचक    आल्हा   कहे,करती अरि संहार।।

बनो   चंद कवि सेशुभम उगलो अनल अपार।
टिके    न दुश्मन   जंग में,  कर मन भेदी वार।।

💐 शुभमस्तु !

18.05.2020 ◆6.25 पूर्वाह्न।

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