मंगलवार, 26 मई 2020

ग़ज़ल


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✍ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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वो   इक़रार- ए-  इल्ज़ाम  करता नहीं ,
जो      ज़ुरूरी   वही   काम  करता नहीं।

उनकी  नफरत की तोहमत गले से लगा,
भूलकर  भूल अपनी तमाम करता नहीं।

अपने     चेहरे को   दिखलाता  है आइना,
फिर भी   कम्बख़्त  एहतराम करता नही।

 आँख में जिनकी नफरत का सुरमा लगा,
वो  मोहब्बत का कभी काम करता नहीं।

जानता   ही  नहीं  जो अवाम  की बेबसी,
निज़ाम   कम्बख़्त यही काम करता नही?

अपने    ही  मुल्क  का जो  है दुश्मन यहाँ,
ऐसे   गद्दार को खत्म हुक्काम करता नहीं।

शुभम ज़िन्दगी जो नामे-वतन कर  चुका,
ऐसा  इन्सां कभी भी आराम  करता  नहीं।

💐 शुभमस्तु !

24.05.2020◆5.30 अप.

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