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✍ शब्दकार ©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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उत्तर दिशि इस देह की ,
होती सिर की ओर।
शयन नहीं करना कभी,
रख निज सिर का छोर।।1।
मिलते हैं दो ध्रुव कभी,
यदि हों एक समान।
क्रिया विकर्षण की बने,
वास्तु शास्त्र का ज्ञान ।।2।
दो उत्तर ध्रुव का मिलन,
जब होता नर देह।
देह - संकुचन की क्रिया,
होती निस्संदेह।।3।।
उत्तर दिशि सिर का मिलन,
बढ़ता रक्त - प्रवाह।
रक्त - दाब की वृद्धि से,
बाधित निद्रा - राह।।4।
उत्तर दिशि सिर का मिलन,
करता हृदय अशांत।
स्वप्न बुरे आते सभी,
तन - मन रहता क्लांत।।5।
उत्तर सिर दक्षिण दिशा ,
में आकर्षण हेतु।
तन बढ़ता लगता सुखद,
सुखद नींद का सेतु।।6।
उत्तर दिशि सिर रख शयन,
ऊर्जा - क्षय का हेत।
जब उठता वह भोर में,
थके देह नर चेत।।7।
प्रश्न इधर उत्तर उधर,
लघु का ही विस्तार।
उत्तर में हल आगमन,
शंका का निस्तार।।8।
यक्ष प्रश्न है सामने,
उत्तर मिला न एक।
कोरोना का हल यहाँ,
ढूँढ़ रहा जग नेक।।9।
कठिन - परीक्षा काल में,
चिंतित है संसार।
समाधान उत्तर नहीं,
खड़ा मनुज इस पार।।10।
प्रति उत्तर संधान में,
विज्ञानी संलग्न।
धरे हाथ पर हाथ निज ,
घबराए जन भग्न।।11।
💐 शुभमस्तु !
23.05.2020 ◆7.00 पूर्वाह्न।
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