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🙏🌷शब्दकार ©
🎠 डॉ. भगवत स्वरूप' शुभम'
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राणा - सा मैं वीर बनूँगा।
छत्रसाल - सा धीर बनूँगा।।
तलवारें जो खन खन करतीं।
जोश जवानों में जो भरतीं।।
वैसी ही शमशीर बनूँगा।
राणा - सा मैं वीर बनूँगा।।
सुनकर नाम मुग़ल थर्राते।
अकबर जैसे शीश झुकाते।।
मैं ऐसा रणधीर बनूँगा।
राणा - सा मैं वीर बनूँगा।।
चेतक पर सवार जो रहता।
सदा हवा से बातें कहता।।
निर्धन का मैं पीर बनूँगा।
राणा - सा मैं वीर बनूँगा।।
घास - पात की रोटी खाते।
देश धर्म हित बलि बलि जाते।
भारत की तक़दीर बनूँगा।
राणा - सा मैं वीर बनूँगा।।
राजपूत हों या बुंदेले।
यहाँ खून की होली खेले।।
मैं कमान का तीर बनूँगा।
राणा - सा मैं वीर बनूँगा।।
🙏🌷शुभमस्तु !
25.05.2020 ◆3.15अपराह्न।
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