शुक्रवार, 8 मई 2020

छिद्रक पुराण [ व्यंग्य ]


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✍लेखक © 
 ☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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            शोध करने पर यह ज्ञात हुआ है कि छिद्रण एक पुनीत कार्य है।छिद्रकों की स्तुतियों में प्रकारान्तर से महात्मा कबीर ने कहा है कि 'निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय।' छिद्रक (निंदक)के पास में रहने से व्यक्ति निरंकुश होने से बच जाता है। उसके आंतरिक भय से भयभीत होकर वह ऐसे कार्य नहीं करता ,जो समाज हित में न हों। वह सदैव सावधान रहता है। हमारे पुराणों , जैसे 'निंदक पुराण', 'छिद्रक पुराण' ,'गिद्ध पुराण ', 'मूषक पुराण', 'चूषक पुराण' आदि में भी छिद्रक की महिमा का गान किया गया है।

           पुराणों का एक अर्थ उन प्राचीन पुरुषों तथा स्त्रियों से भी है, जो प्राचीन काल में हुए ,जिनके पद चिह्नों पर आज के राजनेता उनके चिह्नों को ढूंढ़ कर उन पर अपने चरण कमल रखने का पवित्र प्रयास करते रहे हैं औऱ करते रहेंगे। इन पुराणों से आगे की सभी पीढ़ियों को बड़ी प्रेरणा प्राप्त हुई है। आज जो भी सत्ता दल की सरकार होती है , उसकी निरंकुशता पर अंकुश लगाने औऱ उसके द्वारा सही रास्ते पर चलने के लिए छिद्रकों की सशक्क्त  भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

              इन छिद्रकों का बड़ा ही महत्त्वपूर्ण कार्य यह होता है कि इनको कुर्सी की पवित्र खुजली सदा बनी रहती है।बस वे इस सुअवसर की तलाश में अपनी नज़र एक उल्लू की तरह इस तरह पैनी रखते हैं कि कब कुर्सी लड़खड़ा कर गिरे और वे झट से उस पर आसीन हो जाएं। इसलिए वे सत्ता की चादर में पहले तो यह देखते हैं कि कहीं कोई छेद तो नज़र नहीं आ रहा है। यदि कोई छेद दिखाई देता है तो वे झट से उसमें अपनी अँगुली क्या पूरा हाथ ही डाल देने की फ़िराक में रहते हैं। और यदि सत्ता की चादर साफ औऱ सघन बुनी हुई है तो उसमें नए - नए छिद्र बनाकर अपना छिद्रक धर्म पूरा करना उनका दायित्व हो जाता है।इस धर्म का निर्वाह कुर्सी के निकट पहुंचने तक करते नज़र आते हैं।कुर्सी पर आसीन होते ही झर्र से फाड़ देते हैं।

               उन्हें सत्ता की चादर में छेद ही छेद नज़र आते हैं।बस उनका काम उन्हें चौड़ा करने का है , सो वे अवसरानुकूल उन्हें चौड़ा करते रहते हैं। जनता सुगबुगाती रहती है। भक्तगण सत्ता की आरती उतारते हुए सत्ता मद की महक में मत वाले होकर मतों की बैंक में मत जमा करते रहते हैं। यद्यपि सत्ता का अंध भक्त गण समुदाय छिद्रकों के छेद मूंदने का सफल - असफल प्रयास करता रहता है।करना भी चाहिए , वह भक्त जो ठहरा।

                इस प्रकार प्रिय भक्तो! भक्तदल भी छिद्रक बन जाता है। परिणाम यह होता है कि वे एक दूसरे की चादर में छेद करने के साथ -साथ उसे फाड़ने ,नोंचने ,खसोटने, लगते हैं। अब वह युग नहीं है कि 'ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया।' यदि बिना छेदों के साबुत बच जाए , यही क्या कम है।इसलिए भक्तो ! अपनी -अपनी चादर संभालो , पता नहीं कौन घात लगाए टटिया की ओट में घात लगाए बैठा हों।औऱ आपके छोटे छेद में अँगुली डाल कर बड़ा कर दे। इसलिए सावधान , होशियार, खबरदार ,अपनी चादर में छेद होने से बचा लो। छिद्रक तैयार बैठे हैं।जाग जाओ।
 इति छिद्रक पुराणे मंगलपाठे , छिद्रक माहात्मये प्रथमोध्याय:।
 💐 शुभमस्तु !
 08.05.2020 ◆9.00अप.

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