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✍ शब्दकार ©
🌴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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ख्वाब आँखों में जब मचलते हैं।
जागकर हम जरा सँभलते हैं।
वक्त पर कौन काम आता है,
अपने मतलब से लोग मिलते हैं।
आतिशों की कहीं लपट भी नहीं,
बिना ही आग शख़्स जलते हैं।
गीत गाते मिलन के लोग बहुत,
दिल के किसलय कहाँ पे खिलते हैं।
दुःख तो मेहमान है तनिक दिन का,
आता - जाता है दिन बदलते हैं।
वो तो आये लगा के ज़ख्म चल दिये,
और बोले 'शुभम' कि यार चलते हैं।।
💐शुभमस्तु !
17.05.2020◆2.30अप.
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