शुक्रवार, 29 मई 2020

निंदा [ दोहा ]


★★★★★★★★★★★★★★★★
✍ शब्दकार ©
👭🏻 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
★★★★★★★★★★★★★★★★
निंदा रस जब चख लिया, अन्य हुए रसहीन।
कहने   सुनने  में सभी ,लेते सुरुचि  प्रवीन।।

पर - निंदा मोहक लगे,निज निंदा कटु नीम।
कान   रोपकर सुन रही,बातें मधुर   असीम।

दो   सासें पथ में मिलीं, पनघट पर दो चार।
बहुओं की निंदा मगन, गाली-सुमन प्रहार।।

बहू      बहू से  कह रही, खूसट मेरी  सास।
दिन भर ताने मारती, तनिक न आए रास।।

दस    रस   से भी श्रेष्ठ है,निंदा रस भरपूर।
कानों    से पीते   सभी,  रसानंद में    चूर।।

झूठी-सच्ची बात में,नमक मिर्च कुछ घोल।
कानों    को अच्छे लगें ,निंदा रस   के बोल।।

त्याग   कर्म अपने सभी,निंदा रस में लीन।
नर    से नारी  है बड़ी, भारी  कुशल प्रवीन।।

फुस- फुस  भरती कान में,सुने नहीं दीवार।
सास, बहू की कर रही ,निंदा दो की चार।।

बात   न पचती पेट में,घर - घर फैली  बात।
कान ,कान से कान में,एक एक की सात।।

घर-घर आँगन में पड़ी,निंदक कुटिया आज।
कबिरा    की शिक्षा मिली,सास बहू का राज।।

मुख   से दूरी कान की ,  नापें अंगुल आठ।
रूप   बदलती बात भी,दस की होती साठ।।

है    अनंत औ आदि भी निंदा सरस पुराण।
मधुर   जलेबी से बहुत,गावें 'शुभम' प्रमाण।।

💐 शुभमस्तु !

29.05.2020◆ 7.30 पूर्वाह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...