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✍ शब्दकार ©
👭🏻 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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निंदा रस जब चख लिया, अन्य हुए रसहीन।
कहने सुनने में सभी ,लेते सुरुचि प्रवीन।।
पर - निंदा मोहक लगे,निज निंदा कटु नीम।
कान रोपकर सुन रही,बातें मधुर असीम।
दो सासें पथ में मिलीं, पनघट पर दो चार।
बहुओं की निंदा मगन, गाली-सुमन प्रहार।।
बहू बहू से कह रही, खूसट मेरी सास।
दिन भर ताने मारती, तनिक न आए रास।।
दस रस से भी श्रेष्ठ है,निंदा रस भरपूर।
कानों से पीते सभी, रसानंद में चूर।।
झूठी-सच्ची बात में,नमक मिर्च कुछ घोल।
कानों को अच्छे लगें ,निंदा रस के बोल।।
त्याग कर्म अपने सभी,निंदा रस में लीन।
नर से नारी है बड़ी, भारी कुशल प्रवीन।।
फुस- फुस भरती कान में,सुने नहीं दीवार।
सास, बहू की कर रही ,निंदा दो की चार।।
बात न पचती पेट में,घर - घर फैली बात।
कान ,कान से कान में,एक एक की सात।।
घर-घर आँगन में पड़ी,निंदक कुटिया आज।
कबिरा की शिक्षा मिली,सास बहू का राज।।
मुख से दूरी कान की , नापें अंगुल आठ।
रूप बदलती बात भी,दस की होती साठ।।
है अनंत औ आदि भी निंदा सरस पुराण।
मधुर जलेबी से बहुत,गावें 'शुभम' प्रमाण।।
💐 शुभमस्तु !
29.05.2020◆ 7.30 पूर्वाह्न।
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