शनिवार, 16 मई 2020

🙊 नरकरतलाधारिता 🙊 (कविता )

चित्र चिंतन :


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✍ शब्दकार ©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अल्प     आश्रय ही बहुत है,
नारियों     को   पुरुष  का।
पहुँच  जातीं वे शिखर पर,
पुष्प    खिलता   हर्ष का।।

नारियाँ  -   नर   हैं  परस्पर,
पूरक       चलाते   गेह  को।
विश्वास ,     निष्ठा,      प्रेम ,
करते   वृद्धि उनके श्रेय को।।

पुरुष  की दृढ़ अँगुलियों पर,
नाचती        नारी       यहाँ।
पर   नहीं    इतरा  के चल तू,
भूलकर     नर   का  जहाँ।।

पुरुष      का     साहचर्य  तेरे,
स्वत्व         का   रक्षक  बड़ा।
डगमगाना       नारियो   मत,
मृत्तिका      निर्मित    घड़ा ।।

मत    समझ  नर की हथेली,
सड़क        डामर   की  कड़ी।
जो    उठाए     है   अधर   में, 
 समझ    वह    हिम्मत  बड़ी।।

एकला      चलना   असम्भव,
पुरुष -   नारी      के      लिए।
वह     आम     है  तू  बेल  है ,
लिपटती          तेरे       हिये।।

वह   परुष तू है कांत कोमल,
सृष्टि        का    विस्तार  तू।
वह      बीज    है  सोया हुआ ,
नर     सृष्टि    का   संसार तू।।

तू   'शुभम'   की  माँ बहन है,
अंकशायिनि         कामिनी।
सृष्टि   की   जननी भी तू ही,
देवी      तू     ही    भामिनी।।

हम  उऋण   तुझसे न होंगे,
जन्म      जन्मांतर     कभी।
तुमने    अँगुली  गह चलाया,
तोतले      मधु      बोल भी।।

सबल    मेरा   आज करतल ,
'शुभम'     का   यह   धर्म है।
हाथ     पर    तुझको   उठाऊँ,
यह    पुरुष     का  कर्म है।।

💐 शुभमस्तु !

16.05.2020 ◆11.00पूर्वाह्न।

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