शुक्रवार, 15 मई 2020

इंतज़ाम [ लघुकथा]



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✍ लेखक ©

🍇 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'



 'इस बोरे में इतना क्या ले जा रहे हो ?'
 पुलिसमैन ने साइकिल पर एक बोरे में कुछ ले जाते हुए कल्लू को पूछा।
 'इसमें दारू है साब जी।' कल्लू ने अपनी साइकिल रोकते हुए जवाब दिया।
 'इतनी दारू का क्या करोगे ?' पुलिसमैन ने पुनः सवाल दागा।
 'जी एक महीने से मेरी बीबी को नहीं मिली । ले जाने दो साब ।'कल्लू ने निवेदन किया।
 'क्या तुम नहीं पीते दारू?' पुलिसमैन ने आश्चर्य से पूछा।
 'जी मैं नहीं पीता साब।उसे चालीस दिन से नहीं मिली। सो वह तड़प रही है। उसे रोटी मिले या न मिले ,पर दारू तो रोज़ ही चाहिए।' कल्लू बोला।
 पुलिसमैन उसे आश्चर्य से देख रहा था, कि यह नहीं पीता। इसकी बीबी पीती है! वह होठ पर तर्जनी रखते हुए विचारों में खो गया।
 तभी कल्लू बोला -'मुझे जल्दी से जानें दें साब , वरना वो तड़प - तड़प कर मर जाएगी। जैसे तैसे पैसे बचाकर उसने और मैंने इस लायक इकट्ठे किए थे। एक महीने तो चल ही जाएगी। पता नहीं ये लॉक डॉउन कब ख़तम होगा? इसलिये सोचा कि पहले से इंतज़ाम कर लिया जाए।'
 कल्लू की सच्ची बात सुनकर मुस्कराते हुए पुलिसमैन ने उसे जाने की अनुमति दे दी।

 💐 शुभमस्तु !

 15.05.2020 ◆ 6.30 अप.

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