मंगलवार, 26 मई 2020

🙊 जनता का भगवान 🙊 [ कुण्डलिया]

🙊  जनता का भगवान 🙊
         [ कुण्डलिया]
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✍ शब्दकार ©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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धीमा - धीमा जहर ये, कहर बन रहा रोज।
नहीं बताना शेष कुछ,करनी है क्या खोज।।
करनी     है  क्या खोज,पालतू दुश्मन  सारे।
नेता    के  ये  वोट, नहीं   अब रहे बिचारे।।
'शुभम'  जहर के बीज,जानते जीवन बीमा।
मानवता    का नाश,कर रहे धीमा -धीमा।।

जामुन     खाने  के  लिए, आया है घड़ियाल।
बंदर    बैठा  पीठ  पर,समझ न पाया चाल।।
समझ  न पाया चाल, समय से चेत बढ़ गया।
रखा  कलेजा पेड़,डाल पर उछल चढ़ गया।।
'शुभम' धूर्त घड़ियाल,ठगा है वानर छन छन।
घड़ियालिन     की जीभ,नहीं चख पाई जामुन।

नेता     सारे  देश  के,  करते  मात्र विकास।
परिभाषा    को बदल कर,देते जन को आस।
देते  जन को आस, जाति घर सबसे पहले।
केवल  आत्म विकास,मार नहले पर दहले।।
'शुभम'    एक के लाख,लाख की नैया खेता।
जनता   का भगवान ,श्रेष्ठ है कितना नेता।।

आपद     आई  देश पर,   नेता जी खुशहाल।
कोरोना    के मित्र बन  ,करते रोज कमाल।।
करते     रोज  कमाल,  दोष सत्ता पर थोपें।
करना-धरना  शून्य, अश्क भर उनको कोपें।।
'शुभम'   मदद की बात,जहन में आती शायद।
होता   जन -उद्धार ,  दूर  ही होती  आपद।।

जड़ता        का पर्याय  है, जनता भारत देश।
नेता     सब  घेरे फिरें,जनता जी की   मेष।।
जनता    जी  की  मेष,चल  रहे आगे  चमचे।
मेष    गिर  रहीं कूप,  लुढ़कते धरा   खोंमचे।।
'शुभम'   अश्रु घड़ियाल, चाटती भोली जनता।
नेता      पीता   दूध ,झाग   पर मरती   जड़ता।।

💐 शुभमस्तु !

25.05.2020◆7.30 अप.

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