विधान : चरण 1,3=13,13 मात्रा।
चरण:2,4= 11,11मात्रा।
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✍ शब्दकार©
📘 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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पंचभूत में प्रथम है,
गगन हमारा एक।
दिखता नीला नयन से,
व्याप्त सृष्टि में नेक।।1।
सब में व्यापित गगन है,
पिंड या कि लघु अंड।
जीव जंतु रवि सोम सब,
नभगत छोटे खण्ड।।2।
क्षिति जल पावक वायु का,
आलय गगन अनन्त।
तत्त्व चार क्रीड़ा करें,
कहते कविजन संत।।3।
छोड़ छद्म छल क्षुद्रता,
कर उर का विस्तार।
गगन सदृश व्यापक बनें,
हो जीवन - निस्तार।।4।
नीला दिखता नयन से,
व्याप्त वहाँ सब रंग।
व्यापकता यह गगन की,
मत सुन कर हो दंग।।5।
मानव - शीश कपाल तर,
विशद गगन आकार।
जहाँ ब्रह्म का वास है,
योग करे साकार।।6।
कुंडलिनी सोई हुई ,
नीचे मूलाधार।
गगन प्रतीक्षा में रहा,
जहाँ ब्रह्म का द्वार।।7।।
मानसरोवर - गगन में,
इड़ा पिंगला धार।
मानव तन में सुषुम सँग,
करें प्राण - संचार।।8।
पूर्ण गगन - विस्तार तक,
गति न जीव की मित्र!
आदि सृष्टि से अद्यतन,
बना नहीं नभ - चित्र।।9।
गगन घूमते खग सभी,
नभचर नित स्वाधीन।
ज्यों जल में क्रीड़ा करें,
जलचर सारी मीन।10।
'शुभम' हमारी देह में,
गगन तत्त्व आवाज ।
कवि की रचना में वही ,
वाणी का यह राज।।11।।
💐 शुभमस्तु !
05.05.2020◆ 11.00पूर्वाह्न
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