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✍ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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1
कृष्ण सुदामा मित्र थे,जग में यह विख्यात।
दुनिया में होंगे नहीं,सुने न होंगे स्यात।।
2
धन निर्धन मानक नहीं, यदि हो कोई मित्र।
स्वार्थ रहित होते सदा,अमिट मित्र का चित्र।।
3
जाति-पाँति का अर्थ क्या,जब हों दोनों मित्र।
सबसे ऊपर मित्रता, महके बनकर इत्र।।
4
4
जिसके सँग में बैठकर,भोजन कर लें आज।
शुभम सखा होता वही, यही मित्र का राज।।
5
पत्नी सुत अपनी सुता, सभी सखा हैं नित्य।
सहृदयता उर में बसे,स्वयं सि द्ध औचित्य।
6
देना ही जो जानता, करता निजता त्याग।
लेने की सोचे नहीं, ऐसा मित्र सुभाग।।
7
धन आधारित मित्रता,टिकी स्वार्थ की नींव।
धनाभाव में टूटती , रहती नहीं असींव।
8
8
मित्र नहीं गणिका कभी,वैश्य न होता मित्र।
धन के लोभी ये सभी,सत्य न तथ्य विचित्र।।
9
मित्र बनाने के लिए, होती नहीं मशीन।
दो ध्रुव आपस में मिलें,सजता सखा नवीन।।
10
खोजे जाते मित्र कब,मिलते उर के भाव।
बन जाते हैं मित्र दो, भरें पर स्पर घाव।।
11
सब सहपाठी मित्र हों,नहीं कभी अनिवार्य।
मधुजल सा जो मन मिले हो ता सखा सुकार्य
12
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प्रेमी प्रेयसि मित्र हैं, ज्यों चकोर सारंग।
एक धरा पर सोहता, एक गगन के संग।।
13
बाधक कभी न दूरियाँ,उर हो अपने पास।
सखा सभी उत्तम वही,मन में रखे न आस।।
14
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स्वाति मेघ बिनप्राण तज, देता है पिकमित्र।
गंगाजल भी त्यागता,चातक चारु चरित्र।
15
कलयुग की हर मित्रता,का धन ही आधार।
पैसा रहा न गाँठ में, 'शुभम' न कोई यार।।
💐 शुभमस्तु !
13.05.2020◆9.00पूर्वाह्न
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