◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार ©
⛲ डॉ. भगवत स्वरूप' शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
नहीं नहीं मुख से कहे,मन में हाँ का भाव।
कहो 'शुभम' कैसे चले, बिना नीर के नाव।।
नहीं पास जाना कभी,जहाँ कुसंगति हेत।
मधुपायी के संग में, बदनामी है चेत।।
सुफ़ल कभी मिलता नहीं,जो कर्मों में खोट।
करो खुले में कर्म को, या पर्दे की ओट।।
इश्क हँसी खाँसी खुशी, औ' चोरी का राज।
नहीं छिपाने से छिपें, इन पाँचों का साज।।
नारी कहती ना नहीं, पर मन में विपरीत।
समझ इशारे को पुरुष, नारी की ये रीत।।
सीधे पथ चलते नहीं,कवि कोविद या चोर।
निशाचरण भावे इन्हें,भानु अस्त लों भोर।।
सीधा जीवन -पथ नहीं,चलना बहुत सँभाल।
फूँक - फूँक पद रख यहाँ भावी बने कमाल।
मधुर बोल मोहक लगें, मन को दें सद्भाव।
जिनके उर में विष भरा,नहीं भरेगा घाव।
नहीं नीम के पेड़ पर,फल सकते हैं आम।
विधि वितरक हैं कर्म के, वैसा ही परिणाम।।
मैत्री पुष्प गुलाब की,दुर्लभ इस संसार।
शूल नम्र कोमल नहीं,चुभना ही आचार।
'शुभम' नाम में सार क्या,हो जाता विपरीत।
अमर सिंह तो मर गए, नहीं सोम में शीत।।
💐 शुभमस्तु!
26.05.2020 ◆ 6.30 पूर्वाह्न।
www.hinddhanush.blogspot.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें