शुक्रवार, 1 मई 2020

असमंजस समिति - लघुकथा

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✍लेखक © 🍁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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              एक बड़े शहर के दो दर्जन छोटे - बड़े , चोटी और तली के साहित्यकारों ने एक समिति का गठन किया ,जिसका नामकरण हुआ : 'असमंजस समिति'। विजय दशमी के दानवता पर मानवता की विजय के पावन पर्व के शुभ अवसर पर समिति का शुभ मुहूर्त किया जाना सुनिश्चित किया गया। समीति के उद्घाटन के लिए देश के सफल असफल कवियों ,छुटभैया नेताओ के साथ उनके चमचों  को आमंत्रित किया गया।
                अब उद्घाटन 'असमंजस समिति' का होना था ,इसलिए मुहूर्त के अतिरिक्त सब कुछ गोपनीय रखा गया। सभा - कक्ष खचाखच भरा हुआ था। तभी उद्घोषक द्वारा घोषणा हुई कि माननीय श्री लाल  जी द्वारा लाल फीता कैंची से काटने के बाद आवश्यक कार्यवाही की जाएगी।माननीय  जी ने बड़े उत्साह के साथ मंच पर आकर फीता काट दिया। सभा- कक्ष तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।
                उदघोषक के द्वारा सभी प्रारंभिक क्रियाएँ कराने के बाद एक ताला बंद सुसज्जित बॉक्स मेज पर रखवाया गया   और एक बैनर पहले से यह लिखवाकर टांगा गया कि इस बॉक्स में सभी आगंतुक माननीयों को अपने नाम की पर्ची यह लिखकर डालनी है कि  'मैं  बेईमान हूँ, और भविष्य में भी  रहूँगा।'  सभी ने अपनी -अपनी पर्चियाँ डालीं और कक्ष के द्वार से मुँह लटकाए हुए  बाहर चलते गए। जब अंतिम पर्ची डाली जा रही थी, तब एक भी आगंतुक    परिसर में नहीं था।इसलिए किसी को खुशबूदार दावत खाने का सुअवसर तो प्राप्त नहीं हुआ ।
            जब बॉक्स खोल कर देखा गया तो सभी पर्चियाँ कोरी थीं। किसी पर्ची पर न कुछ लिखा गया था , और न ही किसी ने पर्ची पर अपना नाम लिखा था।
 💐 शुभमस्तु !
 01.05.2020 ◆ 5.00अप.

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