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✍ शब्दकार ©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप' शुभम'
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हे माँ तेरे चरणों में
नित नत - नत वंदन है।
मैं तो बस माटी हूँ
अम्मा तू चंदन है।।
तेरे रक्त का ही हर कण
मेरे तन में रचा - बसा।
उर देह और आत्मा
तुझसे ही प्राण रिसा।।
अम्मा तू तपसी है
तेरे तप का सार हूँ मैं।
तव अमृत से जीवित
वरना निस्सार हूँ मैं।।
तू ही मम धरती है
जीवन - ज्योति प्रदात्री तू।
मैंने तो मात्र लिया
सब कुछ निर्मात्री तू।।
अस्तित्व मेरा तुझसे
है गर्व मुझे इसका।
सबकी हो ऐसी माँ
सौभाग्य बने उसका।।
पीकर अमृत तेरा
पाया मैंने जीवन।
जिसे दूध कहे दुनिया .
पोषित मेरे तन - मन।।
माँ से निर्मित चेतन
माँ तू ही परमेश्वर।
बस तुझको देखा है.
देखा न कभी ईश्वर।।
साक्षात प्रकृति तू ही
प्रत्यक्ष ईश तू ही।
तेरा आँचल स्वर्ग बना
सुख शांति धीश तू ही।।
किस लोक की वासी है
माँ बहुत उदासी है।
समृद्धि सदा देना .
आत्मा अविनाशी है।
कामना यही है माँ
जब तक जीवन जाँ है।
'शुभम' कर्म करे अच्छे
तन - प्राण का साझा है।।
💐 शुभमस्तु!
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