रविवार, 24 मई 2020

🌳🌳 वट 🌳🌳 [ अतुकान्तिका]


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✍ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप' शुभम
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 वट : एक वृक्ष
प्रशस्त जिसका वक्ष,
विराटता का प्रतीक,
भारतीय संस्कृति का
 जीवंत सटीक,
मजबूत तना,
पल्लव शाखाओं से घना,
तना बना ठना,
हमारा वट वृक्ष।

प्राण वायु का
अनवरत संचार
प्रदूषण का निस्तार,
हमारी पावन
संस्कृति का विस्तार,
मजबूत मूल,
संरक्षकत्व का आदर्श
प्रतिदर्श,
सर्वत्र प्रसारित हर्ष,
हमारा वट वृक्ष।

सशक्क्त आश्रय 
सघन शाखा समूह,
अनेक नीड़ों में
बसे हुए पखेरू,
रात दिन लेते बसेरा,
सघन छाँव का
सहारा,
मानव और पशु
सबका उत्कर्ष,
नहीं है उसे 
किसी से अमर्ष,
वर्ष दर वर्ष
मूल का विस्तार,
बढ़ाता सुदृढ़ता
स्वावलम्बन अपार,
आँधियों प्रभंजनों
झंझावातों  से निस्तार,
सर्वथा अप्रभावी,
सुरक्षा संरक्षण का प्रमाण,
करता अहर्निश 
सबका ही त्राण,
हमारा वट वृक्ष।

हमारे गृह स्वामी
पिता किंवा पितामह,
परिवार के वट वृक्ष,
जिनका क्षण - क्षण
निज कुल को समर्पण,
उनकी सुदृष्टि,
बचाती हर कुदृष्टि,
करती सुख-वृष्टि,
दायित्व हमारा
उनकी सेवा ,
ऐसा  पावन
हमारा वट वृक्ष।

वटसावित्री का दिवस 
सुहागिनी नारियों का
 एक और सुअवसर,
करवा चौथ की तरह,
जब वे अपने पति की
दीर्घायु की
 प्रार्थना करतीं,
शुभ आशीष भी पातीं,
सुबह से ही 
करती हुईं व्रत,
बनातीं निज सुगम पथ,
पति -प्रेम में रत,
हमारा वट वृक्ष।


होती है जब
जग प्रलय,
बरसती नभ से 
भयंकर आग,
जल जाती सृष्टि,
होती फिर अपार वृष्टि,
जड़ चेतन सब
जल में निमग्न,
तब प्रभु वट वृक्ष
के एक पल्लव पर
देखते विनाश का नज़ारा,
करते हुए पुनः सृष्टि,
थामकर जल वृष्टि,
नए जीवन का संचार,
उस क्षण भी
अमर रहता 
हमारा अक्षुण्ण वट वृक्ष।

वृक्षों में जीवन है,
वट में भी,
वे हैं हमारे देव,
देना ही जानते हैं,
मानव करते हैं
अतः निरन्तर सेव,
वट सदृश पौधे लगाएं,
अपनी संस्कृति को
उज्ज्वल बनाएं,
वर्षा का आधार,
जीवन का आधार,
वट में  हैं हम ,
हम में  ही ही वट साकार,
प्यारा  दुलारा 'शुभम'
हमारा अक्षय वट वृक्ष,
हमारा आश्रय वट वृक्ष।

💐 शुभमस्तु !

22.05.2020 ◆6.20 पूर्वाह्न।

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