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✍ शब्दकार©
🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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ये सभी पद!
जिनका है
अपना -अपना मद,
सभी बिछौने हैं,
मैले भी हुए
तो पुनः धोने हैं,
ये ही बड़े हैं
और सब बौने हैं।
हर पद का
एक निश्चित है कद,
उनमें भी
विस्तरित है मद
अलग -अलग,
कभी पद,
कभी रद्द,
कहें भले
हम अपनी भद्द!
पर चाहिए उन्हें तो
कर पट्टिका सद,
सबकी है
अपनी - अपनी हद,
चाहिए उनको
सबको हमको
बस विरुद ,
मात्र विरुद।
प्रजातंत्र है
जिसे चाहा
उतार दिया,
जिसे चाहा
सँवार दिया,
न मानक
न कोई मूल्य,
न कोई किसी के
समतुल्य।
सब कुछ अस्थाई,
शाश्वत नहीं,
तत्काल संतुष्टि का
साधक वही,
सराहना -पसंद मानव,
चाहता नहीं
कहीं लाघव,
उत्तरोत्तर विकास
पतन और ह्रास,
उभयरूप श्वास,
कभी उच्छवास!
एक पगड़ी
कभी सिर धरी,
कभी उतरी,
कभी मंत्री
कभी संतरी भी नहीं,
प्रजातंत्र की ये
परम्परा ही रही,
न सही ,
तो भी सही,
मात्र मत आधार,
न कर्तव्य
न अधिकार,
कभी गलहार,
कभी बस हार,
यही है
प्रजातंत्र का विकार,
पद के कद का
विकृत अपस्मार,
गति बनता हुआ
उर्मिल उभार,
मानवीय चेतना गत
'शुभम' खुमार।
💐 शुभमस्तु!
28.05.2020◆7.15 पूर्वाह्न।
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