बुधवार, 20 मई 2020

🌱💃 नारी-2 🌱💃 [ कुण्डलिया ]


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✍ शब्दकार©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कोयल - सा स्वर नारि का,
आकर्षण       का      यूप।
नर     को    बाँधे  मोह में,
डुबा      भ्रमर    या कूप।।
डुबा      भ्रमर    या  कूप,
सबल   सम्मोहन    ऐसा।
जैसी       बजती      बीन ,
नाचता   नर   फिर  वैसा।।
'शुभम'    सुघर     युव देह,
परस   विद्युत  का कॉइल।
किसे    न      खींचे  मीत,
मधुर नारी- स्वर कोयल।।1।

नारी  -  चरित  बखान  यों,
ज्यों      केले     में    पात।
पात      पात     में पात है,
पात      पात   में    पात।।
पात      पात   में     पात,
अंत    कोई   कब   पाया।
नारी      कामिनि     रूप,
नारि  ही  सबकी  जाया।।
'शुभम'       पहेली    गूढ़,
आदि   से अब  तक नारी।
सजा      भ्रमों   का जाल,
सृष्टि   ब्रह्मा की नारी।।2।

 नारी    की    छाया   बुरी,
अंधा        होता       नाग।
उस  नर की क्या हो दशा,
खेले   नित    सँग   फाग।।
खेले  नित    सँग    फ़ाग,
आग    के    घर में रहना।
घृत  सम   नर   का  रूप,
परिधि में फिर भी बहना।।
'शुभम'       उठाते    भार,
परस्पर    भारी -    भारी।
अजब     संतुलन    मीत,
प्रकृतिगत नर औ'नारी।।3

नारी   ऋण   ध्रुव  धारिणी,
नर    धन धारक        रूप।
उभय     ध्रुवों   के मेल से,
बनता     सृष्टि  -   स्वरूप।।
बनता     सृष्टि -    स्वरूप,
जगत  में    जीव   जनाए।
अंड    पिंड    के      रूप,
समय  से जग में     छाए।।
'शुभम'  ग्राहिका      नारि,
पुष्प   की   पावन क्यारी।
नर       दाता      सौभाग्य,
बीज-धरिणी  शुभ नारी।।4।

💐 शुभमस्तु !

19.05.2020 ◆2.30 अपराह्न।

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