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✍ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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प्रेम सृष्टि का मूल है,
प्रेम सृष्टि का हेत।
बिना प्रेम सारा जगत,
बिना नीर का रेत।।1।।
मात - पिता के प्रेम का,
हम तुम सब परिणाम।
प्रेम सृष्टि का बीज है,
करता 'शुभम' प्रणाम।।2।।
चार पुण्य पुरुषार्थ में,
धर्म अर्थ औ' काम।
प्रेमांकुर का हेत है,
जीव सृष्टि में नाम।।3।।
नर - नारी के प्रेम में,
वंश - वृद्धि का मूल।
नर - बीजों का धर्म है,
विकसे नारी फूल।।4।।
प्रेम - सुधा माधुर्य में,
मादकता मकरंद।
जिसने पाया है कभी,
नृत्य करे स्वच्छंद।।5।।
पति - पत्नी में प्रेम ही,
जुड़ने का आधार।
आकर्षण सद्गन्ध का,
संतति में साकार।।6।।
धन ऋण ध्रुव दोनों मिले,
चक्र हुआ जब पूर्ण।
नर - नारी के मिलन का,
लक्ष्य यही संपूर्ण।।7।।
स्वाति - बिंदु सीपी गिरा,
मुक्ता का निर्माण।
अवधि पूर्ण जब हो गई,
शुक्ति सिंचिता प्राण।।8।।
खग चकोर के प्रेम का,
'शुभम' निदर्शन एक।
शशि बैठा आकाश में,
लगा लगन की टेक।।9।।
स्वाति मेघ के प्रेम में,
चातक लग्न अनूप।
गंगा जल पीता नहीं,
सर सागर या कूप।।10।।
श्रीकृष्ण से प्रेम का,
मीराबाई नाम।
स्वर्ण वर्ण में लिख गया,
पति माने घनश्याम।।11।।
प्रेम अधूरा जो रहा,
उसका जग में नाम।
'शुभम' प्रेम पूरा करे,
रहता वही अनाम।।12।।
💐 शुभमस्तु !
14.05.2020 ◆10.45अप.
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