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✍ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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यदि मानव के हाथ में,
होती सारी शक्ति।
नहीं मानता ईश को,
मिट जाती उर भक्ति।।1।
यदि मानव होता अमर,
करता सृष्टि विनाश।
दानव रूपी जीव से,
मिटता विश्व - विकास।।2।
अहंकार से मनुज यदि,
होता नहीं विरूप।
होता तब वह देवता,
पावन पुण्य - स्वरूप।।3।
यदि अपनी ही मृत्यु का,
हो मानव को ज्ञान।
शांति रहे मन में नहीं,
बजे न ऊँची तान।।4।
यादगार यदि हो अमिट,
सुख - दुख रहते याद।
मानव सुख रहता नहीं,
रहता सदा विषाद।।5।
पाप - पुण्य होते नहीं,
यदि मानव - संसार।
पुण्य नहीं करता मनुज,
करता पाप अपार।।6।
पाप - पुण्य होते नहीं,
यदि न नर्क या स्वर्ग।
चौरासी लख यौनि के,
तब क्यों होते वर्ग??7।
यदि मानव होता नहीं,
इतना विकसित आज।
चीते , शेरों पर नहीं ,
करता मानव राज।।8।
यदि मानव रखता वही,
अपना आदिम रूप।
वन बीहड़ में भटकता,
नहीं धरा का भूप।।9।
यदि जल थल नभ देखती,
गहन मानवी दृष्टि।
निज को ईश्वर मानता,
अन्य रूप में सृष्टि।।10।
यदि मान व में अशुभ का,
नहीं सृजित हो लेश।
रावण, कंस न जन्मते ,
और न बढ़ती क्लेश ।।11।
💐 शुभमस्तु!
04.05.2020◆2.00अप.
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