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✍ शब्दकार ©
📒 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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चार खम्भ जनतंत्र के,
पत्रकारिता एक।
पत्रकार निर्भीक हों,
बेचें नहीं विवेक।।1।
जनहित में संलग्न हों,
कहें लिखें सुविचार।
पत्रकार इस देश के,
बनें न जन पर भार।।2।
नेता जी के साथ में ,
उड़ते बने विहंग
वही लिखें जो वे कहें,
पत्रकार जो संग।।3।
पत्रकार जी बिक रहे ,
दामोदर के दास।
ऊँची बोली में बिकें,
नेताजी के पास।।4।
सच होता है और कुछ,
दिखलाते कुछ और।
तोड़ मोड़कर छापते,
कभी किया है गौर ??5।
पत्रकार तो लाल हैं ,
पत्रकारिता पीत।
सत्य उपेक्षित हो गया,
सनसनियों की जीत।।6।
लोकतंत्र में मीडिया,
चौथा हिस्सेदार।
सत्ताधारी संग में ,
खाएँ मलाई यार।।7।
बहुत बड़ा व्यवसाय है,
पत्रकार का आज।
पूर्वाग्रह से ग्रसित वे ,
मिटा रहे हैं खाज।।8।
चाटुकारिता से शुरू ,
काज मलाईदार।
पत्रकार अभव्यक्ति की,
करते खड़ी मजार।।9।
'वाच डॉग' होते वही,
करें श्वानवत खोज।
भ्रष्ट आचरण के सभी,
पर्दे फाड़ें रोज।।10।
'पेज थ्री' में देख लें,
चकमक संग अमीर।
महफ़िल फैशन की सजी,
मालपुआ सँग खीर।।11।
💐 शुभमस्तु !
30.05.2020◆6.15 पूर्वाह्न।
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