गुरुवार, 7 मई 2020

मधुशालायें खुल गईं [ कुंडलिया]


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✍ शब्दकार ©
🍁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मधुशालायें       खुल    गईं,
आया     स्वर्णिम    काल।
खड़े    यार   जन  द्वार पर,
संग      चलो     तत्काल।।
संग        चलो      तत्काल,
बुझाओ     देह   -  पिपासा।
हों   न      कहीं    फिर बंद, 
करें    किससे   क्या आशा?
'शुभम'  बहुत    दिन   बाद,
खुशी  है    क्या    बतलाएँ।
हाला      में     रह       चूर, 
खुल  गईं   मधुशालायें।।1।

मंदर     में      ताले     पड़े,
मधुशाला             आबाद।
प्रेमी    हाला    के     सभी,
आज       हुए     आज़ाद।।
आज       हुए      आज़ाद,
मौज     में     कूदें  -  नाचें।
हिंदी    तो     दी       छोड़,
न्यूज़  इंगलिश    की  बाँचें।।
'शुभम'    खुल    गए भाग,
नाचता     जैसे        बंदर।
पिएं        सोमरस      रोज़,
बंद     हैं     सारे     मंदर।।2।

भोले       बन     बैठे    हुए,
देह  -  दशा     का  ध्यान।
नियम  न   कोई   भंग  हो,
पूरा      है           संज्ञान।।
पूरा          है        संज्ञान,
हाथ   जब   आती  हाला।
लगती    स्वर्ग      समान ,
चहकती     ये    मधुशाला।
'शुभम'   मनाते     मौज,
चल     रहे   डगमग  हौले।
मधुशाला     के      बीच,
नाचते  -  गाते  भोले।।3।

पीड़ा    तन- मन की  हरे,
पीओ      ले -  ले   स्वाद।
देवलोक    का   सोमरस,
कोई      नहीं     विवाद।।
कोई       नहीं     विवाद,
सुधा  मानव - हित होती।
खुश     रहता     परिवार ,
प्रेमरस    घर    में बोती।।
'शुभम'  स्वयं     सरकार ,
उठाकर     बेचे      बीड़ा।
निर्भय     होकर      झूम ,
दूर तन-मन  की पीड़ा।।4।

नाली     की      शोभा बढ़ी ,
औंधे     मुँह      दो    चार।
पहुँचे    जाकर   स्वर्ग    में,
हूरें        मिलीं       हज़ार।।
हूरें        मिलीं        हज़ार,
नहीं        काला    कोरोना।
केवल  -     केवल   प्यार ,
चैन      की    निद्रा  सोना।।
'शुभम'     सोमरस   लीन,
नहीं    है   बीबी    काली।
हूरों       का        बाज़ार ,
महकती  चंदन  नाली।।5।

💐 शुभमस्तु !

05.05.2020 ◆4.50 अप.

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