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✍ शब्दकार ©
🌱 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अदम्य
जिजीविषा का प्रतीक
मैं नवांकुर,
अपदार्थ को भी
पदार्थ बनाता हुआ,
थाले के बीच नहीं,
थल में भी नहीं,
एक पुराने
जंग लगे
ताले के हवाले,
स्वच्छ प्राण वायु में
साँस ले रहा हूँ।
आशा
और विश्वास का संबल,
बहुत ही प्रबल,
पोषण जल
धूप हवा,
सब हैं सुलभ,
साथी नन्हे पादपों के साथ,
न मेरे पाँव
न कोई हाथ,
संध्या से प्रात,
दिन और रात,
जी रहा हूँ।
बोया नहीं किसी ने,
ढोया नहीं किसी ने,
देखा न रवि
शशि ने,
प्रकृति का चमत्कार,
मैं नन्हा -सा हरा बिरवा,
रखता नहीं विकार,
यह सहज जीवन,
मुझे स्वीकार,
स्वयं में मस्त,
न कभी पस्त,
न जाने क्यों
मैं भी कभी
एक नन्हा -सा
बीज रहा हूँ।
सीख लो मुझसे
ओ! निराश मानवो!
मरने न दो
जिजीविषा अपनी,
स्वप्न देखो
साकार भी करो,
मेरी तरह,
पर उपकार करो,
मेरी ही तरह,
चलते रहो!
चलते रहो!!
रुको मत ,
चलने का नाम
जिंदगी है,
यही परमात्मा की
सजीली वंदगी है,
देखो मुझे
कैसे उठाकर शीश
मैं नाचता हूँ।
मैं अदम्य जिजीविषा हूँ।
💐 शुभमस्तु !
30.05.2020 ◆10.45 पूर्वाह्न।
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