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✍ शब्दकार ©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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वादा करता मुक्ति का,
जीव जननि के गर्भ।
मुक्त करो प्रभु नर्क से,
देता जप -संदर्भ।।1।
आते ही संसार में ,
जीव गया सब भूल।
मुक्ति - कामना नस गई,
मिल धरती की धूल।।2।
होना था यदि मुक्त तो,
लेता प्रभु का नाम।
शत्रु बनाए मित्र सब ,
लोभ मोह औ' काम।।3।
कष्ट मिले जब गर्भ में,
याद रहे तब राम।
आया बाहर गर्भ से,
भूला खेल ललाम।।4।
संस्कार प्रभु - भक्ति के,
मिलते जिसको मित्र।
मुक्ति - मार्ग पर जीव तब,
अलग बनाता चित्र।।5।
बचपन खोया खेल में,
यौवन में रत काम।
मुक्त जीव होता नहीं,
जरा देह बेकाम।।6।
वसन गेरुआ रँग लिए,
भजते निशि - दिन काम।
मुक्त नहीं होते कभी,
रँगते रंग न राम।।7।।
ऊपर - ऊपर राम हैं,
नीचे नारी काम।
मुक्त - मार्ग कुछ और है,
भजें सुबह से शाम।।8।
याद रहा वादा नहीं,
फिर - फिर का ही फेर।
शैशव यौवन भी विदा,
हुआ मुक्ति का ढेर।।9।
मुक्त हुआ जग से नहीं,
गया न प्रभु की राह।
अहंकार में लीन तू,
मिथ्या तेरी चाह।।10।
आडम्बर से राम का ,
मुक्त पंथ अति दूर।
'शुभम' रँगो मन राम में,
मिले मुक्ति भरपूर।।11।
🌹इति शुभम!
💐 शुभमस्तु !
10.05.2020 ◆5.30 पूर्वाह्न।
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