शुक्रवार, 15 मई 2020

मुक्त [ दोहा ]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार ©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
वादा     करता  मुक्ति  का,
जीव     जननि     के गर्भ।
मुक्त  करो  प्रभु    नर्क से,
देता         जप -संदर्भ।।1।

आते     ही       संसार    में ,
जीव    गया    सब     भूल।
मुक्ति -   कामना  नस गई,
मिल   धरती    की धूल।।2।

होना   था  यदि  मुक्त  तो,
लेता        प्रभु  का     नाम।
शत्रु      बनाए      मित्र सब ,
लोभ       मोह औ' काम।।3।

कष्ट   मिले   जब  गर्भ  में,
याद         रहे    तब     राम।
आया        बाहर    गर्भ  से,
भूला     खेल   ललाम।।4।

संस्कार     प्रभु -   भक्ति के,
मिलते      जिसको     मित्र।
मुक्ति - मार्ग   पर जीव तब,
अलग        बनाता  चित्र।।5।

बचपन       खोया    खेल में,
यौवन      में     रत    काम।
मुक्त     जीव    होता    नहीं,
जरा         देह     बेकाम।।6।

वसन      गेरुआ   रँग  लिए,
भजते    निशि  - दिन काम।
मुक्त       नहीं     होते कभी,
रँगते      रंग    न  राम।।7।।

ऊपर -     ऊपर      राम     हैं,
नीचे           नारी        काम।
मुक्त  -   मार्ग    कुछ  और  है, 
भजें       सुबह   से   शाम।।8।

याद        रहा      वादा  नहीं,
फिर - फिर      का ही  फेर।
शैशव      यौवन   भी विदा,
हुआ    मुक्ति     का ढेर।।9।

मुक्त  हुआ   जग   से नहीं,
गया  न    प्रभु     की राह।
अहंकार       में     लीन  तू,
मिथ्या      तेरी   चाह।।10।

आडम्बर       से    राम  का ,
मुक्त      पंथ    अति     दूर।
'शुभम'    रँगो   मन राम में,
मिले     मुक्ति    भरपूर।।11।

🌹इति शुभम!

  💐 शुभमस्तु !

10.05.2020 ◆5.30 पूर्वाह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...