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✍ शब्दकार©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मंदिर को मंदर कहा,
केवल भिड़ा तुकांत।
काव्य - कर्म सिखला रहे,
ज्ञानवान कवि शांत।।1।
मन का दर यदि बंद है,
मंदिर है पाषाण।
केवल मन की मान्यता ,
प्रतिमा में भी प्राण।।2।
मंदर है आलय सखे,
मंदिर भी है धाम।
मंदर मंदिर कुछ कहो,
मन में हों यदि राम।।3।
मंदिर का झगड़ा बुरा,
किसका अहम महान।
जो सुदूर है राम से,
उसकी ऊँची शान।।4।
मन्दिर मंदिर रट लिया,
समझ न पाया भाव।
शब्दों में खोया हुआ,
मन में गर्हित घाव।।5।
शब्द व्यंग्य का बाण है,
शब्द सुमंगल त्राण।
जीभ सँवारे बोलिए,
क्यों कहता तू काण।।6।
एक आँख का आदमी ,
काना कहो न मित्र।
तुमसे यदि काना कहें,
होगी दशा विचित्र।।7।
एक पैर का आदमी,
क्यों कहता तू लंग?
तुझको तब कैसा लगे,
जब हो तेरा भंग।।8।
अगर गलत के पक्ष में ,
होंगे चार हजार।
'शुभम' करेगा सत्य ही,
कथनी बारंबार।।9।
हिंदी अवरोधक सभी ,
होते जब एकत्र।
पीपल को बरगद कहें,
उन्हें चाहिए छत्र।।10।
शक्ति लक्षणा व्यंजना ,
का भी लें संज्ञान।
रूढ़ अर्थ - पाहन बने,
पढ़ भाषा -विज्ञान।।11।
💐 शुभमस्तु !
06.05.2020 ◆6.00अप.
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