शनिवार, 9 मई 2020

छेद -महिमा [ चौपाई ]


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✍ शब्दकार ©
🎱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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छेद    ढूँढना    काम  हमारा।
छेदों   का    ही  हमें  सहारा।।

छोटा    छेद   मिले जब कोई।
हमने  झट निज अँगुली पोई।।

अँगुली   डाल   छेद  में तानी।
करें  वही  जो मन में  ठानी।।

 क्या   खाली हम गाजर तोलें?
 चुप    ही रहें  नहीं कुछ बोलें??

वे   पूरब  हम  पच्छिम जाते।
काम     न उनके   हमें सुहाते।।

वे    कुर्सी  पर   दरी  हमारी।
टाँग   खींच हम बने सुखारी।।

चादर   जितनी  बड़ी  पसारे।
दिखें   छेद से   सभी नज़ारे।।

अच्छे  को  क्यों सुघर बताएँ!
निज  दल   की शंका में आएँ??

सत्ता - दल की  करें न शंसा।
सदा   बुरी   है  अपनी मंशा।।

उलटी   चाल सदा हम चलते।
सत्ता के    सब कारज खलते।।

हम   कुर्सी  के  भूखे  - प्यासे।
दल   को  कभी न देते झाँसे।।

जो  वे   आज   करें  घोटाले।
हमने   वे  सब कल पर टाले।।

जनता   की नज़रों में उनको।
खूब  गिराना आता हमको।।

पक्के    भक्त  न पलटें भाई।
उन्हें   दीखते   निपट कसाई।।

जाति - पाँति  से मत मिलते हैं।
आँखों     में   सपने   पलते  हैं।।

अपनी   रुचि है   जोड़ -तोड़ में।
अक्ल     हमारी   रहे  गोड़ में।।

ज्यों    छेदों   से  कपड़े फटते।
त्यों   सत्ता के  लफड़े कटते।।

आओ   प्यारे मिलकर आओ।
छेद     ढूँढ़ने   में लग जाओ।।

जो   तुम   ढूंढो   साथ  हमारे।
सत्ता      में    ले   लेंगे प्यारे।।

एक  छेद  की कीमत कितनी?
जो    माँगोगे     देंगे    उतनी।।

'शुभम'  छेद की महिमा भारी।
सत्ता     की  दे   चादर प्यारी।।

💐 शुभमस्तु  !

08.05.2020●2.30 अप.

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