●●●●●●●●●●●●●●●●●●
✍ शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●
दिन का शुभ प्रतिलोम जो,
कहलाए वह रात।
दिवस उजाले से भरा,
निशि तम की सौगात।।
निशि तम की सौगात,
शयन के लिए बनाई।
होते फिर भी काज,
बहुत सारे सुखदाई।।
'शुभम' न समझें हीन,
रंग रजनी छिन -छिन का।
पहलू दोनों ख़ास,
रात औ ' उज्ज्वल दिन का।।1
देवी की नवरात हों,
या शिवजी की रात।
अहं भूमिका रात की,
जैसे संध्या प्रात।।
जैसे संध्या प्रात,
सुहागी रात बनाई।
करता अपना ब्याह,
प्रणय सँग मनुज मनाई।।
'शुभम' एक ही बार,
नारि बनती पति सेवी।
गृहलक्ष्मी का रूप,
नारियाँ गृह की देवी।।2।
रातें हों रंगीन जब ,
विस्मृत करें न धर्म।
पति - पत्नी के हित बने,
निज गृह के शुभ कर्म।।
निज गृह के शुभ कर्म,
बनाते घर को सुंदर।
खुशियों की बरसात ,
सजाते ज्यों शचि इंदर।।'
'शुभम ' सोच लें आज ,
नहीं ये कोरी बातें।
बनता शुभ परिवार,
राग से रंजित रातें।।3।
रातें काली शुभ नहीं,
रखें सुखद रंगीन।
बीती बातें भूल कर,
पर सुख को मत छीन।।
पर सुख को मत छीन,
रात का तम है काला।
कर्म न करना स्याह,
छीन मत दीन - निवाला।।
'शुभम' अशुभ वे काम,
छीनते जन, धन, छातें।
रचना सुख के काज ,
न करना काली रातें।।4।
दीवाली की रात को ,
जलते दिए हज़ार।
स्याम निशा उज्ज्वल करें,
उर भर हर्ष अपार।
उर भर हर्ष अपार,
ज्योति जगमग बिखराई।
उर के शुभ उद्गार,
निशा में शुभ सुखदाई।।
'शुभम' राम ने आज ,
विजय रावण पर पाली।
जन - जन है खुशहाल,
आ गई शुभ दीवाली।।5।
💐 शुभमस्तु !
13.05.2020◆ 11.30 अप.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें