शनिवार, 9 मई 2020

मेघ [ चौपाई ]


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✍ शब्दकार ©
⛈️ डॉ. भगवत स्वरूप' शुभम'
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धरती     प्यासी   माँगे  पानी।
अभी  न   आए बादल दानी।।

जेठ   मास   में सूखा, तपते।
प्यासे   जीव जंतु जल जपते।।

दूर  - दूर  तक   मेघ  न पाए।
नभगज  नभ में कहाँ सिधाए।

कृषक   ताकते नित्य गगन में।
बढ़ी खिन्नता नित्य लगन में।।

आया    मास   सुरम्य  अषाढ़ा।
अम्बर      छाए   मेघ   प्रगाढा।।

आशाओं    की जगी  पिपासा।
मेघ   न देते जग को झाँसा।।

घटाटोप    घिर    आए बादल।
झर-झर  बरसा अम्बर से जल

खेत  बाग  वन  हरसाए   हैं।
घन घर - आँगन बरसाए हैं।।

हृदय कली किसान की खिलती।
आशाओं    को  ताकत मिलती।।

प्यासे  पंक्षी    प्यासे  वनचर ।
मुदित  हुए   पी  नीर वरिधर।।

गरजे  मेघ  बिजलियाँ चमकें।
गड़    गड़  करते  वे आ धमकें।।

अंकुर       उगे    धरा    हरषाई।
चहुँ   दिशि  बहु हरियाली छाई।।

बालक   बूढ़े  सब    नर- नारी।
हर्ष    मनाते   हुए    सुखारी।।

विरहिन  पिय दर्शन को तरसे।
नयनों  से  झर झर जल बरसे।

अजहुँ  न  आए पिया  हमारे।
कैसे   अमुआ   झूला   डारे।।

झूलूँ     कैसे     नहीं   सुहावे।
तब  झूलूँ   पिय  पींग बढ़ावे।।

गरजें    मेघ   काँप  मैं जाती।
साथ न पीतम  मैं शरमाती।।

नाली     नाले     बहे   पनारे।
गली  सड़क जल भरते सारे।।

दादुर     करते   गान रात भर।
झींगुर  की झनकार गहनतर।।

वीरबहूटी       है     शरमाती।
कोयल*   मीठे   गाने  गाती।

स्वाति   बूँद चातक सब पीते।
बरसे    मेघ  खूब   मनचीते।।

बरसे     सावन  मेघ  अषाढ़ा।
हुआ   जलद   पावस में गाढ़ा ।।

*जिस कोयल की मधुर वाणी
सुनाई देती है, वह नर होता है, मादा नहीं।

💐 शुभमस्तु !

08.05.2020    5.45 पूर्वाह्न 

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