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✍ शब्दकार©
🔰 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जब चले गए तब लगा पता।
शब्दों में कैसे कहूँ जता।।
तुम बिना कहे कुछ चले गए ।
जैसे हम बालक छले गए।।
तुम सागर थे हम बूँदें हैं।
क्यों नयन पूज्य पितु मूँदे हैं।
तुम छाया थे हम माया हैं।
तुम प्राण अमर हम काया हैं।
हे पिता! पता पहले हो तुम।
कैसे सब भूल सकेंगे हम।।
आदर्श , पुत्र के गुरु मेरे।
तुमसे निकले कवि स्वर घेरे।।
तुम नारिकेल सम बाहर से।
कोमल निर्मल जल अंदर से।।
तुम जनक हमारे बीज नवल।
आचरण सदा ही रहा धवल।।
तुम थे बरगद की घनी छाँव।
नित पूज्य तुम्हारे पितृ पाँव।।
आशीष तुम्हारा साथ रहा।
हर बुरा समय ज्यों धार बहा।
क्षण बदला कण-कण बदला।
तुम नहीं रहे जीवन उथला।।
क्षण बीता सब कुछ गया रीत
अब कहाँ स्नेह औ पिता प्रीत
तुम बिना हो गया घर सूना।
माँ बिना दुःख मेरा दूना।।
पीला पत्ता ले गई हवा।
दुख में समझाना नहीं दवा।।
अनिवार्य सत्य कैसे टलता!
मैं रहा हाथ अपने मलता।।
अपने सुख त्याग हमारे हित।
दुख ही झेले हैं तुमने नित।।
तुम बिना अश्रु मेरे बहते।
किससे पीड़ा मन की कहते।।
🌷इति शुभम।
💐 शुभमस्तु !
११.०५.2020 5.४५ अपराह्न
११.०५.2020 5.४५ अपराह्न
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