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✍ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मुश्किलें आएँ बुरा लगता है,
ग़म हों सब दूर भला लगता है।
मन से बुलाता है कौन ग़म को,
आ जाएँ तभी पता लगता है।
कोशिशें कीं ग़म भुलाने की ,
पता नहीं वो क्या लगता है?
घर में रहना रास आ गया है,
हर एक पल बुरा लगता है।
होता नहीं कवि लोक में अपने,
तब ये जीना भी ख़ता लगता है।
पढ़कर के रचना अच्छी कहे कोई,
पता नहीं तब क्या लगता है!
'शुभम' ज़िन्दगी भर सच कहेगा,
इन्सां जो झूठा बेहया लगता है।
💐 शुभमस्तु !
09.05.2020◆ 5.00अप.
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